जानिए दीपावली पर्व से जुड़े इतिहास को







दीपावली या दीवाली अर्थात "रोशनी का त्योहार" शरद ऋतु में हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है।[ दीवाली भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। यह त्योहार आध्यात्मिक रूप से अंधकार पर प्रकाश की विजय को दर्शाता है।
माना जाता है कि दीपावली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे। अयोध्यावासियों का ह्रदय अपने परम प्रिय राजा के आगमन से प्रफुल्लित हो उठा था। श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। यह पर्व अधिकतर ग्रिगेरियन कैलन्डर के अनुसार अक्टूबर या नवंबर महीने में पड़ता है। दीपावली दीपों का त्योहार है। भारतीयों का विश्वास है कि सत्य की सदा जीत होती है झूठ का नाश होता है।
दीपावली स्वच्छता व प्रकाश का पर्व है। कई सप्ताह पूर्व ही दीपावली की तैयारियाँ आरंभ हो जाती हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। घरों में मरम्मत, रंग-रोगन, सफ़ेदी आदि का कार्य होने लगता है। लोग दुकानों को भी साफ़ सुथरा कर सजाते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं।






इस साल दीपावली या दिवाली 07 नवंबर, 2018 को मनाई जाएगी।  वर्ष 2018 में नरक चतुर्दशी/छोटी दिवाली नवंबर 06 मनाई जाएगी।
यह माना जाता है कि जब भगवान राम अयोध्या पहुंचे थे तब पूरे शहर को हजारों तेल के दीपकों (दीया) को जला कर उनका स्वागत किया गया था। पूरी अयोध्या को फूलों और सुंदर रंगोली से सजाया गया था। तब से, दिवाली को रोशनी का त्योहार कहा जाता है। भगवान राम का अपने घरों में स्वागत करने के लिए लोग तेल के लैंप के साथ सजावट करते हैं यही कारण है कि इस त्योहार को 'दीपावली' भी कहा जाता है। तेल के दीयों की परंपरा बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। लोग अपने घरों के प्रवेश द्वार पर सुंदर रंगोली और पादुका (पादलेख) चित्रण करके देवी लक्ष्मी का स्वागत करते हैं। दिवाली के त्योहार को मनाने के लिए लोग दोस्तों, रिश्तेदार और पड़ोसियों को मिठाई और फल बांटते है। 
दिवाली का जश्न पांच दिनों की अवधि में फैला हुआ है जिसमे प्रत्येक दिन का अपना महत्व है और जिसमे परंपरागत अनुष्ठानों का पालन किया जाता है। जश्न 'धनतेरस' के साथ आरम्भ होता है, यह वह शुभ दिन है जिसमे पर लोग बर्तन, चांदी के बर्तन या सोना खरीदते हैं। यह माना जाता है कि नए "धन" या कीमती वास्तु की खरीदार शुभ हैं। इसके बाद छोटी दिवाली आती है जिसमें बड़ी दिवाली की तैयारी होती है। लोग अपने घरों को सजाने की शुरुआत करते हैं, और एक दुसरे से मिलते-जुलते है। अगले दिन बड़ी दीवाली मनाई जाती है। इस दिन, लोग लक्ष्मी पूजा करते हैं, मिठाई और उपहार के साथ एक दूसरे के घर जाते हैं, पटाखे जलाते हैं और अपने परिवार और दोस्तों के साथ समय बिताते हैं। दिवाली के अगले दिन गोवर्धन पूजा का पर्व मनाया जाता है और अंततः पांच दिवसीय उत्सव भाई दूज के साथ समाप्त होता है जहां बहने अपने भाइयों के माथे पर तिलक लगाती हैं और भाई बहन एक-दूसरे की भलाई के लिए प्रार्थना करते हैं।





दीपावली पर लक्ष्मी पूजा 
अधिकांश घरों में दीपावली के दिन लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा की जाती है। हिन्दू मान्यतानुसार अमावस्या की रात्रि में लक्ष्मी जी धरती पर भ्रमण करती हैं और लोगों को वैभव का आशीष देती है। दीपावली के दिन गणेश जी की पूजा का यूं तो कोई उल्लेख नहीं परंतु उनकी पूजा के बिना हर पूजा अधूरी मानी जाती है। इसलिए लक्ष्मी जी के साथ विघ्नहर्ता श्री गणेश जी की भी पूजा की जाती है। 

दीवाली की प्रार्थनाएं

प्रार्थनाएं
क्षेत्र अनुसार प्रार्थनाएं अगला-अलग होती हैं। उदाहरण के लिए बृहदारण्यक उपनिषद की ये प्रार्थना 
असतो मा सद्गमय।
तमसो मा ज्योतिर्गमय।
मृत्योर्मा अमृतं गमय।
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
अनुवाद:
असत्य से सत्य की ओर।
अंधकार से प्रकाश की ओर।
मृत्यु से अमरता की ओर।(हमें ले जाओ)
ॐ शांति शांति शांति।।

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