अमृत-संदेश है इस कुंभ में ll








दुनिया के चांद पर जाने को तैयार इस दौर में मात्र गंगा में डुबकी मात्र से मोक्ष की आस पर इतरा भी सकते हैं, मुस्करा भी। पर इस सच से मुंह मोड़ नहीं सकते कि समाज का बड़ा हिस्सा इस आस्था से अनुप्राणित है कि मात्र कुंभ स्नान से वह मोक्ष के अधिकारी हो जाएंगे। इस जमावड़े में विदेशी भी शामिल हैं। महेशानंद गिरि के जुलूस में पखावज बजाते विदेशी भक्तों की भीड़ रोमांचित करती है। कैलीफोर्निया से आई पेंटर सेरेन तो अचंभित है।

अद्भुत, अकल्पनीय, अवर्णनीय। पौ फटने के साथ संगम की रेती पर हर तरफ बस सिर ही सिर। इतनी भीड़। न कोई आह्वान, न घोषणा, न ही कोई प्रचार या पोस्टर। पंचांग के एक कोने में कुंभ या महाकुंभ लिखे होने के आधार मात्र पर इस जनसमुद्र का जुटना अचंभे में डालता है। आखिर कौन सी विद्युत तरंग मन को उद्वेलित कर देती है कि वह खिंचा सा चला आया। अस्मिता की पहचान, खुद से जुड़ने की लालसा या फिर आस्था?
हर-हर महादेव के उद्घोष के साथ तमाम अखाड़ों के साधू-संतों का जुलूस। गंगा के  दुग्धाभिषेक के साथ नागा साधुओं का छपाक-छपाक।  धूनी लपेटे साधुओं के अजब-गजब करतब। शाही स्नान का सिलसिला बढ़ता है जो दिन भर चलता है। यह बात अलग है कि गृहस्थों ने भोर से ही डुबकियां लगाना प्रारंभ कर दिया था। बलिया की सीता और सुरेश की शादी तीन महीने पहले हुई है। सिदुंर, बिंदी और महावर लगाकर आई सीता शरमाते हुए कहती हैं कि बड़े भाग से कुंभ स्नान का मौका मिला है। पटना से आई सुमित्रा देवी कह रहीं थीं कि ‘12 बजकर 2 मिनट पर नहान भवा हय। अब हम तव चैन से मरब। गंगा मइया हमका सरग देखइहें’। 

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