काशी में आयोजित पर्यावरण कुंभ का समापन



वाराणसी के काशी विद्यापीठ में आयोजित दो दिवसीय पर्यावरण कुंभ में एक खास विचारधारा से जुड़े वक्ता ही दिखाई पड़े। पर्यावरण कुंभ के दौरान इसकी चर्चा रही कि आयोजन में स्थानीय और प्रतिष्ठित पर्यावरणविदों को विचार व्यक्त करने के लिए नहीं बुलाया गया।  
आयोजन पर नजर रखने वालों का कहना है कि इसी शहर के प्रो. वीरभद्र मिश्र ने पर्यावरण के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य किया था। आयोजन में उनके फाउंडेशन और उनके परिजनों के अलावा जल पुरुष राजेंद्र सिंह को भी बुलाया जाना चाहिए था। इन्हीं लोगों का मानना है कि वर्तमान सरकार ने कुंभ को सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से जोड़कर धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की परिकल्पना को साकार किया है। बावजूद इसके मंच पर विभिन्न विचारों का समावेश होना आवश्यक था।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की योजना के मुताबिक पांच वैचारिक कुंभों की योजना के तहत पर्यावरण कुंभ काशी विद्यापीठ में हो चुका है। 8-9 दिसंबर को मातृवंदन कुंभ वृंदावन (मथुरा) में होगा। तीसरा 15-16 को समरसता कुंभ अयोध्या, चौथा 22-23 दिसंबर को युवा कुंभ लखनऊ और पांचवां 30 जनवरी को प्रयाग में संस्कृति कुंभ होगा।

‘सरकार की प्राथमिकता में नहीं है प्रदूषण’

पर्यावरण कुंभ में शिरकत करने पहुंचे सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड पूर्व चेयरमैन डॉ. एसपी गौतम ने कहा कि  वायु प्रदूषण के कारक और समाधान अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग हैं। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इसके समाधान भी दिए हैं, लेकिन सरकार के पास एक तो सीमित संसाधन हैं, दूसरा वायु प्रदूषण उनकी प्राथमिकता में नहीं है। इसके अलावा तात्कालिक निदान भी हमारी सबसे बड़ी कमजोरी है।

जब स्मोग बढ़ता है, एयर क्वालिटी इंडेक्स गंभीर पैमाने पर होते हैं तो हल्ला मचता है, लेकिन फिर सब शांत हो जाते हैं। दिल्ली में स्मोग की सबसे बड़ी वजह पराली है। इससे हम कंपोज्ड वुड बना सकते हैं, बायो फर्टिलाइजर बना सकते हैं। एंजाइम्स भी बनाए जा सकते हैं। 

गुरुनानक देव यूनिवर्सिटी, अमृतसर के डॉ. आदर्श पाल विग ने कहा कि  सॉलिड वेस्ट इस वक्त पर्यावरण की सबसे बड़ी समस्या है और ये समस्या मानव की दी हुई है। कचरे को री-यूज करने की तकनीक ज्यादा से ज्यादा अपनानी होगी। भारतीय समाज में वेस्ट नाम का कोई शब्द ही नहीं था, लेकिन हमने यूज एंड थ्रो की सभ्यता अपना ली है, इस वजह से हमें ये दिक्कतें झेलनी पड़ रही हैं।

कुरुक्षेत्र यूनिवर्सिटी हरियाणा की प्रो. रंजना अग्रवाल ने कहा कि प्रदूषण के लिए केमिकल्जिस को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, लेकिन हमें ये समझना होगा कि इस समस्या से निपटने के लिए हमें इसकी जरूरत भी है। दरअसल, हमें केमिकल का इस्तेमाल कितनी मात्रा में करना है, ये नहीं पता है। इस वजह से ये केमिकल हमारे लिए टॉक्सिक हो जाते हैं। टॉक्सिक केमिकल से हमें ईको-फ्रेंडली केमिकल की ओर बढ़ना होगा। 

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