पुरानी रंगत में फिर लौट आया संगम घाट, शहरी ले रहे जमकर मजा






कुंभ स्नान तो अब कहने मात्र तक ही रह गया है। इसकी रौनक और रंगत की पुरानी परिपाटी संगम तीरे पर देखने को मिली। लोग अपने ही मिजाज में संगम घाट पर चार पहिया वाहन से लेकर दो पहिया वाहन के साथ वहां पहुंचकर स्नान किया। परिवार के साथ सेल्फी, संगम में प्रवासी पक्षियों की फोटो और नाव की सैर किया। अपनी सहुलियत को ध्यान में रखा और घराें की ओर लौट गए।
मेला के मकर सक्रांति,पौष पूर्णिमा, मौनी अमावस्या और माघी पूर्णिमा जैसे पर्वो के बीतने के बाद ही मेला सामान्य हो गया। इस दौरान स्थानीय और आस-पास के जिलों से लोंगो के आने-जाने सिलसिला संगम घाट की पर होने लगा। लोग बड़ी-बड़ी गाड़ियाें के साथ घाट तक जाने लगे। जिससे वहां पर गाड़ियों की कतारें लग गई। धुआं और धूल का मिश्रण लाेगो को परेशान किया। यहां तक इन्हें छूट सुरक्षा कर्मियाें ने दी थी। आलम रहा कि घाट पर कहीं बिखरे कपड़े रहे तो कही संगम तीरे पर ही कपड़े बदलने का क्रम चलता रहा।

यहां तक लोगो ने गंगा में कपड़े धोने के प्रतिबंध को भी दरकिनार किया और गंगा में ही कपड़े धोए। जो आम स्नान के दिनाें में साफ तौर पर देखा जा रहा था। जबकि मेला प्रशासन ने श्रद्धालुओं को कपड़े बदलने की पर्याप्त व्यवस्था घाट पर ही कर रखी है। ताकि महिलाओं को कपड़े बदलने में कोई असुविधा नहीं हो। इसके बावजूद चेजिंग का कोई प्रयोग नहीं हुआ। अव्यवस्था के पति लापरवाही लोगो की यही नहीं थमी, बल्कि बढ़ती ही गई। आम दिनाें की भांति संगम नोज पर दान की फेंकी हुई पन्नियां, घाट पर बिखरे कागज कप रहे। जिन्हें उठाने की फुर्सत इनके पास नहीं थी

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