जानिए क्यों है आपत्ति : इलाहाबाद के नाम बदलने पर...

याची के अधिवक्ता विजय चंद्र श्रीवास्तव के अनुसार इलाहाबाद नाम के साथ पौराणिकता जुड़ी हुई है। यह प्रयागराज से अधिक पुराना है। प्रतिष्ठानपुरी के शासक मनु की पुत्री इला के नाम से इलावास बना, जो बाद में इलावास और फिर इलाहाबाद हो गया। अकबर से लेकर अंग्रेजों के शासनकाल में इलाहाबाद के नाम से ही इस जिले ने प्रसिद्धि पाई है।
स्वतंत्रता आंदोलन में भी इसी नाम से इसकी ख्याति हुई। याची ने कहा- नाम बदलने में नहीं हुआ संवैधानिक प्रावधानों का पालनयाची का कहना है कि सिर्फ नाम बदल देने से इसकी धार्मिकता में कोई वृद्धि नहीं होती है। प्रदेश सरकार ने नाम बदलने में संवैधानिक और कानूनी प्रावधानों का भी पालन नहीं किया। महाधिवक्ता से विधिक राय नहीं ली गई और न ही चेयरमैन बोर्ड ऑफ रेवेन्यू से कोई राय ली गई। राजस्व कानूनों के तहत सरकार को सिर्फ राजस्व क्षेत्र बढ़ाने का अधिकार है, नाम परिवर्तन करने का नहीं। याचिका में कई अन्य पौराणिक साक्ष्य भी दिए गए हैं।याची के अधिवक्ता के मुताबिक याचिका में अर्द्धकुंभ का नाम बदलकर कुंभ करने को भी चुनौती दी गई है। यह पौराणिक मान्यताओं के विपरीत है। ऐसा करने से पूर्व न तो संतों से राय ली गई और न ही आम जनता की मंशा समझने की कोशिश की गई। कुंभ और जिले का नाम बदलने के नाम पर सरकार ने करोड़ों रुपये खर्च कर दिए। इस धनराशि का उपयोग विकास कार्यों में किया जा सकता था। मांग की गई है कि जिले को प्रयागराज नाम बदलकर फिर से इलाहाबाद नाम दिया जाए और कुंभ को अर्द्धकुंभ किया जाए
Comments
Post a Comment